Monday, May 17, 2010

31 May २०१० विश्व तम्बाकू निषेध दिवस


महिलाओ को तम्बाकू आपदा से बचाने के लिए मनाया जायेगा वर्ष २०१० का विश्व तम्बाकू निषेध दिवस

विश्व स्वास्थय संगठन द्वारा वर्ष २०१० का विश्व तम्बाकू निषेध दिवस का विषय महिलाओ को ध्यान में रखते हुए घोषित किया गया है ।इस बार का विषय है लिंग और तम्बाकू जिसमे विशेष महत्व महिलाओ को तम्बाकू उत्पादों की मार्केटिंग है । उल्लेखनीय है की विश्व के १०० करोड़ धूम्रपान करने वालो में २० प्रतिशत महिलाए है, यही कारण है की विश्व की तम्बाकू कंपनिया तम्बाकू उत्पाद की खपत महिलाओ में बढ़ाने के लिए नई मार्केटिंग योजनाओ पर काम कर रही है ।सन २०१० के विश्व तम्बाकू निषेध दिवस का मुख्य उद्देश्य महिलाओ खासकर लडकियो को तम्बाकू उत्पादों की मार्केटिंग से होने वाले दुष्प्रभावो से बचाना है ।गौरतलब है की विश्व के करीब १७० देशो ने व्यापक तम्बाकू नियंत्रण संधि पर हस्ताक्षर किये है । इस बार का तम्बाकू निषेध दिवस इन देशो को तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन और उनके प्रचार प्रसार एवं स्पानसरशिप पर रोक लगाने के लिए भी प्रोत्साहित करेगा।

पूरे विश्व में और भारत में सबसे चिंताजनक बात यह है की महिलाओ खासतौर से लडकियों में तम्बाकू उपयोग का चलन बढ़ता जा रहा है विश्व स्वास्थय संगठन की रिपोर्ट के अनुसार तम्बाकू कंपनिया महिलाओ को तम्बाकू की और आकर्षित करने के लिए प्रयासरत है । विश्व के १५१ देशो से प्राप्त जानकारी के अनुसार १२ प्रतिशत लडको के मुकाबले ७ प्रतिशत लड़किया धूम्रपान करती है , कई देशो में तो लड़के और लड़किया सामान रूप से धूम्रपान करते हे ।वर्ष २०१० का तम्बाकू निषेध दिवस महिलाओ को तम्बाकू महामारी से बचाने के लिए पुरे विश्व में जागरूकता फेलाने का काम करेगा ।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार महिलाओ का स्वास्थ्य हमारे विकास और जन स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है महिलाओ का अच्छा स्वास्थ्य न सिर्फ हम लोगो के लिए जरुरी है बल्कि हमारी आने वाली पीढियों लिए भी यह बहुत जरुरी है ।

हालाँकि इस वर्ष तम्बाकू निषेध दिवस महिलाओ को ध्यान में रखकर मनाया जायेगा लेकिन साथ ही इस बात पर भी ध्यान दिया जायेगा की पुरुषो को भी तम्बाकू आपदा से कैसे बचाया जाये।
विश्व स्वस्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है की तम्बाकू आपदा को नियंत्रित करने के लिए लिंग आधारित नीतिया बनाना बहुत जरुरी है और महिलाओ और पुरुषो दोनों को तम्बाकू से होने वाली जानकारी होना जरुरी है । क्योकि आजकल तम्बाकू कंपनिया लिंग आधारित तम्बाकू उत्पाद बनाने पर जोर दे रही है (यानि महिलाओ और पुरुषो के लिए अलग अलग तम्बाकू उत्पाद), यही कारण है की आज सभी देशो को लिंग आधारित तम्बाकू नियंत्रण नीतिया बनाने की जरुरत है और उसमे महिलाओ की सहभागिता बहुत जरुरी है ।

महिलाओ का स्वास्थ्य और तम्बाकू

• मध्य प्रदेश में (१५-४९) आयु वर्ग के ६८.५ प्रतिशत पुरुष एवं १६ प्रतिशत महिलाए किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते है ।
• मध्य प्रदेश में ४०.२ प्रतिशत पुरुष एवं ०.५ प्रतिशत महिलाए सिगरेट/बीडी का सेवन करते है ।
• भारत में १.४ प्रतिशत महिलाए धूम्रपान एवं ८.४ प्रतिशत महिलाये खाने योग्य तम्बाकू का सेवन करती है ।
• तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओ में गर्भपात की दर सामान्य महिलाओ से तक़रीबन ९५ प्रतिशत अधिक होती है ।
• तम्बाकू सेवन के कारण महिलाओ में फेफड़ो का कैंसर ,दिल का दौरा, सांस की बीमारी ,प्रजनन सम्बन्धी विकार ,निमोनिया ,माहवारी से जुडी समस्याए अधिक उग्र हो जाती है ।
• तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओ में प्रसव समय से काफी पहले हो जाता है उनके बच्चे सामान्य औसत वजन से करीब ४०० -५०० ग्राम से कम के पैदा होते है ।

महिलाए और तम्बाकू कंपनियों की मार्केटिंग
जिस तरह से महिलाए आत्मनिर्भर हो रही है ऐसे में संभव है की महिलाओ में तम्बाकू प्रयोग का चलन भी बढ़ जाये । विकसित देशो में तो महिलाए धूम्रपान करती है लेकिन अभी भी विकासशील देशो में महिलाए बहुत कम संख्या में धूम्रपान करती है और यही कारण है की तम्बाकू कपनियो को विकाशील देशो में बहुत बड़ा बाज़ार नज़र आ रहा है ।
महिलाओ को सिगरेट की मार्केटिंग का इतिहास
• सन १९१९ में लारिवार्ड कंपनी पहली बार महिलाओ के चित्रों का उपयोग तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन के लिए प्रयोग किया ।
• १९२० में सिगरेट को महिलाओ की स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया ।
• १९२७ में मार्लबोरो ब्रांड में सिगरेट को फेशन और दुबलेपन से जोड़ा गया साथ ही कई कपनियो ने अभिनेत्रियों को तम्बाकू उत्पादों से जोड़ना शुरू किया ।
• १९६० में फिलिप मौरिस कंपनी ने वर्जिनिया स्लिम्स नाम से मार्केटिंग केम्पेन शुरू की जिसकी पंच लाइन थी You have come a long way baby जिसमे बताया गया था की महिलाए अब पुरुषो से पीछे नहीं है ।
महिलाओ को तम्बाकू उत्पादों की मार्केटिंग के लिए कंपनिया कई तरह से उन्हें आकर्षित करती है जैसे तम्बाकू उत्पादों के फ्री सेम्पल देना , स्पोंसरशिप , महिलाओ के लिए खास तरह के ब्रांड बनाना जैसे हलकी मध्यम सिगरेट आदि ।ज्यादातर तम्बाकू कपनिया महिलाओ को सिगरेट की तरफ आकर्षित करने के लिए उसे ग्लेमर ,स्टाइल,सेक्स अपील आदि से जोडती है । इसके अलावा तम्बाकू उत्पादों को महिलाओ के बीच में प्रचारित करने के लिए फ्री सेम्पल, कूपन, पैक डिस्काउंट आदि का प्रयोग करती है । विदेशो में तो कला/ महिला क्लबो की स्पोंसेरशिप तम्बाकू कंपनियों द्वारा करा जाना बहुत आम है । इसके अलावा इन्टरनेट पर भी सिगरेट कंपनियों प्रचार करने में लगी हुई है ।महिलाओ को सिगरेट की तरफ आकर्षित करने के लिए फिल्मो में अभिनेत्रियों को सिगरेट पीते हुए दिखाना बहुत आम हो गया है । हाल ही में कई फिल्मे ऐसी आई जिसमे महिलाओ को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया ।
जहा तक विकासशील देशो की बात है तो अभी भी इन देशो में महिलाओ द्वारा धूम्रपान करना अच्छा नहीं माना जाता है, इसलिए इन देशो में धूम्रपान करने वाली महिलाओ का प्रतिशत बहुत कम है और यही कारण है की विश्व की बड़ी तम्बाकू कंपनिया भारत और चीन जैसे देशो में महिलाओ को तम्बाकू की तरफ आकर्षित करने में लगी हुई है ।भारत में ग्रामीण स्तर पर महिलाओ द्वारा खाने वाले तम्बाकू का प्रचलन ज्यादा और कुछ जगह बीडी का भी प्रयोग महिलाए करती है लेकिन अभी भी ज्यादातर महिलाए तम्बाकू से दूर ही रहती है ,लेकिन आज की महानगरीय जीवन शैली में भारत के ज्यादातर महानगरो में हुक्का सेंटर्स बढ़ते जा रहे हे जहा पर लडकियों द्वारा हुक्का सेवन आम हो चला है ।
आज जबकि पुरे भारत वर्ष में हर साल करीब ८ लाख मौते तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के कारण होती है, जिनमे से ज्यादातर पुरुष होते है, लेकिन यदि हमें हमारी आने वाली पीढियों को तम्बाकू आपदा से बचाना है तो पुरुषो के साथ महिलाओ को भी तम्बाकू से बचाना होगा ।

हालाँकि भारत सरकार ने व्यापक तम्बाकू नियंत्रण कानून बनाया है लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य को देखते हुए हमें लिंग आधारित तम्बाकू नियंत्रण नीतिया बनाना होंगी और इसके लिए इन नीतियों में महिलाओ की तरफ विशेष ध्यान देने की जरुरत है साथ ही महिलाओ को निष्क्रिय धुम्रपान से बचाने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान निषेध का कढाई से पालन करवाना होगा और
महिलाओ के लिए काम करने वाली संस्थाओ को भी इस विषय से अवगत करना होगा ।

1 comment:

  1. बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |

    बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
    अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर

    सनसनाते पेड़
    झुरझुराती टहनियां
    सरसराते पत्ते
    घने, कुंआरे जंगल,
    पेड़, वृक्ष, पत्तियां
    टहनियां सब जड़ हैं,
    सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |

    बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
    पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
    पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
    तड़तड़ाहट से बंदूकों की
    चिड़ियों की चहचहाट
    कौओं की कांव कांव,
    मुर्गों की बांग,
    शेर की पदचाप,
    बंदरों की उछलकूद
    हिरणों की कुलांचे,
    कोयल की कूह-कूह
    मौन-मौन और सब मौन है
    निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
    और अनचाहे सन्नाटे से !

    आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
    महुए से पकती, मस्त जिंदगी
    लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
    पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
    जंगल का भोलापन
    मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
    कहां है सब

    केवल बारूद की गंध,
    पेड़ पत्ती टहनियाँ
    सब बारूद के,
    बारूद से, बारूद के लिए
    भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
    भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।

    फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    बस एक बेहद खामोश धमाका,
    पेड़ों पर फलो की तरह
    लटके मानव मांस के लोथड़े
    पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
    टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
    सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
    मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
    वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
    ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
    निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
    दर्द से लिपटी मौत,
    ना दोस्त ना दुश्मन
    बस देश-सेवा की लगन।

    विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
    अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
    बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
    अपने कोयल होने पर,
    अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से

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